Wednesday, March 5, 2014

एक कानून की दो तस्वीरें


कानपुर में कानून की खिल्ली   

चुनाव की घंटी बज गई है। शेखचिल्ली ने बताया कि सूबे में समाजवादियों की सरकार है। राममनोहर लोहिया की बातें कही जाती हैं। कानपुर का यह सीन किस समाजवाद की चुगली कर रहा है? यह सबकी समझ में आ रहा है। सफाई भी कितनी भी दी जाए झूठ के पैर नहीं होते और सच सबकी समझ में आता है। पूरे प्रदेश में डॉक्टर की हड़ताल से पचास से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है। सरकार है कि उन्हें न्याय तक नहीं दे पा रही। दूसरी ओर नेता जी कह रहे हैं कि उन्हें पीएम बना दिया जाए।
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दिल्ली में कानून का इकबाल

खुद को बड़ा देशभक्त कहने वाला शख्स जब कानून के शिकंजे में आया तो पहले उसने माफी मांगी। फिर उसने हाथ जोड़े। कहा कि उसकी कोर्इ शर्त भी नहीं। क्या अदालत के सामने भी कोर्इ शर्त चलती है? दस्तूर भले नहीं था लेकिन मौका जरूर था, एक शख्स ने इसका पूरा फायदा उठाया। उसने इनके चेहरे पर स्याही फेंक दी। अदालत शब्दों से बुने गए किसी भी खूबसूरत झांसे में नहीं आर्इ। इससे न केवल कानून का इकबाल कायम हुआ बल्कि यह भी संदेश गया कि गरीबों के हक की बात कहीं तो सुनी जाती है। इस देश में दूसरों की चमड़ी से खुद के लिए दमड़ी कमाने वाले कम नहीं है।

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