कभी ख़ुद पे, कभी हालात पे रोना आया बात निकली, तो हर इक बात पे रोना आया हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उनको क्या हुआ आज, ये किस बात पे रोना आया किस लिये जीते हैं हम किसके लिये जीते हैं बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया
यह कैसा समाज है जो पुरस्कार
भी देता है और इस कदर बेमुरव्वत भी हो जाता है। कोई है जो सुन रहा है
(साभार- अमर उजाला, 24
अक्तूबर, 2013)
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