अक्सर ऐसा होता है कि हम अपनी मस्ती में चूर दूसरों के बारे में सोचना ही बंद कर देते हैं। आनंद मनाने या खुशी जताने की बजाए हुल्लड़बाजी के स्तर पर जाकर अराजकता का तांडव करने लगते हैं। अक्सर ऐसी हरकत कर बैठते हैं जो कि घोर लापरवाही के दायरे में आती है। ऐसी लापरवाही को फिर यह कहकर ढका जाता है कि जानबूझ कर नहीं किया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। किसी की खुशियों पर डाका पड़ चुका होता है तो किसी को जिंदगी भर का जख्म मिल चुका होता है।
बात ज्यादा पुरानी नहीं है। दिल्ली में कुछ
लड़के सड़कों पर बाइक से फर्राटा भर रहे थे। पुलिस रोकने की कोशिश कर रही थी। तभी
एक पुलिसवाले ने टायर पर गोली चला दी। इसी बीच बाइक चला रहे लड़के ने बाइक इस तरह
घुमाई कि गोली पीछे बैठे लड़के को लगी जिससे उसकी मौत हो गई। एक की लापरवाही ने किसी
के घर का चिराग लील लिया। वह लड़का अपने परिवार का इकलौता बेटा था। क्या किसी के
पास सफाई के बोल होंगे? क्या वे बोल उस परिवार की
खुशियां लौटा पाएंगे?
ताजा मामला भी दिल्ली के एक स्कूल का है। स्कूल
के खुले मैदान पर कुछ बच्चे भाला फेंकने का अभ्यास कर रहे थे। खुले मैदान में ऐसी
खतरनाक प्रैकिटस और वह भी टीचर की गैरमौजूदगी में घोर लापरवाही का प्रतीक थी। इसका
नतीजा भी खतरनाक निकला। एक लड़के ने भाला इस तरह फेंका कि उसकी दिशा एक क्लास से
निकल रहे बच्चों की ओर हो गई। भाला एक बच्चे के सिर में जाकर घुस गया। हालांकि
उसने अपने दो दोस्तों को बचा लिया। छठी कक्षा का यह छात्र 14 दिनों तक कोमा में
रहा और फिर उसने दम तोड़ दिया। इसी के साथ उसके परिजनों के सपने भी चकनाचूर हो गए।
किसी की गोद सूनी हो गई तो किसी की आंखों का तारा चला गया। ऐसे में अफसोस जताने के
अलावा क्या कोई कुछ कर सकता है? और अफसोस से वह बच्चा वापस तो नहीं लौटे आएगा।
बड़ा सवाल यह कि हम ऐसी लापरविहयां करते ही
क्यों है? हम कोई भी काम करने से पहले अगर यह सोच लें कि इसके परिणाम क्या हो सकते
हैं तो ऐसी घटनाएं रोकी जा सकती हैं। अरे! ऐसी भी क्या मस्ती और क्या उत्सव जो दूसरे के
रंग में भंग डाल दे। कभी हमारी रफ ड्राइविंग का कोई भुक्तभोगी बनता है तो कभी किसी
ओर तरीके से।
बात सोचने और महसूस करने की है। क्या नहीं…….???
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