Thursday, March 27, 2014

कलाकारों का कलापुर यानी रघुराजपुर


भारत एक ऐसा देश है जहां के चप्पे-चप्पे पर कला के दर्शन होते हैं। यहां के कलाकारों की तूती दुनिया भर में बोलती है। अफसोस इस बात का है कि इन कलाकारों को उनकी प्रतिभा का उचित मोल नहीं मिलता। बड़े-बड़े बिजनेसमैन उनकी कला का व्यापार करते हैं। उड़ीसा का एक इलाका रघुराजपुर भी कुछ ऐसे ही दौर से गुजर रहा है। यहां के कलाकारों की कृतियां दुनियाभर में बिकती हैं लेकिन वे खुद अभावों की जिंदगी बसर कर रहे हैं। ये सारा काम मशीनों की बजाए हाथ से करते हैं। यह इनकी खासियत है। यहां एक लिंक दे रहा हूं ताकि इनकी कला आप भी देखें। साथ ही इनका सही हक दिलाने में मदद भी कीजिए। 

https://www.youtube.com/watch?v=Ioa3dcnrEWY,   http://doright.in.

Thursday, March 13, 2014

सहबों को भा रही सियासत

राजनीति में इन दिनों नौकरशाहों और अफसरों की दिलचस्पी कुछ ज्यादा हो गई है। इस पर हमने भी लेखनी चलार्इ....


Wednesday, March 5, 2014

एक कानून की दो तस्वीरें


कानपुर में कानून की खिल्ली   

चुनाव की घंटी बज गई है। शेखचिल्ली ने बताया कि सूबे में समाजवादियों की सरकार है। राममनोहर लोहिया की बातें कही जाती हैं। कानपुर का यह सीन किस समाजवाद की चुगली कर रहा है? यह सबकी समझ में आ रहा है। सफाई भी कितनी भी दी जाए झूठ के पैर नहीं होते और सच सबकी समझ में आता है। पूरे प्रदेश में डॉक्टर की हड़ताल से पचास से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है। सरकार है कि उन्हें न्याय तक नहीं दे पा रही। दूसरी ओर नेता जी कह रहे हैं कि उन्हें पीएम बना दिया जाए।
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दिल्ली में कानून का इकबाल

खुद को बड़ा देशभक्त कहने वाला शख्स जब कानून के शिकंजे में आया तो पहले उसने माफी मांगी। फिर उसने हाथ जोड़े। कहा कि उसकी कोर्इ शर्त भी नहीं। क्या अदालत के सामने भी कोर्इ शर्त चलती है? दस्तूर भले नहीं था लेकिन मौका जरूर था, एक शख्स ने इसका पूरा फायदा उठाया। उसने इनके चेहरे पर स्याही फेंक दी। अदालत शब्दों से बुने गए किसी भी खूबसूरत झांसे में नहीं आर्इ। इससे न केवल कानून का इकबाल कायम हुआ बल्कि यह भी संदेश गया कि गरीबों के हक की बात कहीं तो सुनी जाती है। इस देश में दूसरों की चमड़ी से खुद के लिए दमड़ी कमाने वाले कम नहीं है।

डाक विभाग का कारनामा !

सरकारें विकास की बातें करती हैं लेकिन सरकारी विभाग उनके दावों की धज्जियां उड़ा कर रख देते हैं। एक बानगी देखिए- भारतीय डाक की रजिस्ट्रड सेवा से एक पत्र मैंने 18 फरवरी को नोएडा हेड ऑफिस से इलाहाबाद के लिए भेजा। यह पत्र (RU603983300IN) आज तक अपने पते पर नहीं पहुंचा। 21 फरवरी से लगातार एक ही जगह पर अटका है। इसमें एक परीक्षा के लिए आवेदन था। 25 फरवरी तक इलाहाबाद पहुंचना था और भारतीय डाक विभाग तीन दिन में पहुंचाने का दावा करता है। विभाग की वेबसाइट का स्क्रीन शॉट पोस्ट कर रहा हूं। सवाल यह कि इस व्यक्तिगत नुकसान की भरपार्इ कौन करेगा? तय तिथि से सात दिन के अंदर आवेदन भेजा था। क्या नोएडा से इलाहाबाद के लिए यह समय कम था? कोई न्यूयॉर्क या लंदन तो था नहीं। अगर आप भी ऐसे हालात से दो-चार हुए हैं तो इसकी निंदा कीजिए, सरकारी विभागों की ढिठाई में शायद कुछ कमी आ सके।